Gangrel Dam(गंगरेल डैम): छत्तीसगढ़ का मिनी गोवा और ऐतिहासिक धरोहर
गंगरेल डैम, जिसे आधिकारिक रूप से पंडित रविशंकर सागर बांध (Pandit Ravishankar Sagar Dam) कहा जाता है, छत्तीसगढ़ राज्य के धमतरी जिले के गंगरेल ग्राम में स्थित है। यह महानदी नदी पर निर्मित छत्तीसगढ़ का सबसे लंबा और सबसे बड़ा बांध है। प्राकृतिक सौंदर्य, रोमांचक जल क्रीड़ाओं, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व से भरपूर यह स्थान अब Mini Goa of Chhattisgarh के नाम से जाना जाता है, जहां देश ही नहीं विदेश से भी लोग घूमने आते हैं।
Gangrel Dam स्थान और दूरी (Location and Distance)
स्थान: ग्राम गंगरेल, जिला – धमतरी, छत्तीसगढ़
महानदी नदी पर स्थित
धमतरी से दूरी: 12–15 किमी
रायपुर से दूरी: 78–92 किमी
बिलासपुर से दूरी: 198 किमी
दुर्ग/भिलाई से दूरी: 82 किमी
इतिहास और निर्माण (History &
Construction)
सर्वे की शुरुआत: 1965
शिलान्यास: 5 मई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी द्वारा
निर्माण पूरा: वर्ष 1978
मुख्य अभियंता: श्री देव राज सिक्का
निर्माण में लगी कंपनियां: रेडियो हजरत, सागर कंपनी, मित्तल एंड कंपनी
Gangrel Dam डूब क्षेत्र (Submerged Villages):
कुल 55 गांव डूब क्षेत्र में आए, और 52 गांव पूरी तरह बांध क्षेत्र में समा गए। इस दौरान 16,704 एकड़ भूमि जलमग्न हुई 8,275 लोगों का पुनर्वास हुआ
गंगरेल डैम की विशेषताएं (Features of Gangrel Dam)
विशेषता |
विवरण |
नदी |
महानदी (Mahanadi River) |
लंबाई |
1830 मीटर |
ऊँचाई |
30 मीटर (लगभग 100 फीट) |
जलग्रहण क्षेत्र |
32.15 TMC |
जलधारण क्षमता |
15,000 क्यूसेक |
गेट्स की |
14 स्पिलवे गेट्स |
जलाशय का |
95 वर्ग किलोमीटर |
सिंचाई क्षेत्र |
57,000 हेक्टेयर भूमि |
बिजली उत्पादन |
10 मेगावाट जलविद्युत |
Gangrel Dam Mini Goa of Chhattisgarh – Water Sports & Boating Activities
गंगरेल डैम को “Mini Goa” की संज्ञा इसलिए दी जाती है क्योंकि यहां विभिन्न प्रकार की पानी की खेल गतिविधियाँ (Water Sports Activities) होती हैं:
Parasailing, Jet Skiing, Flyboarding,
Kayaking, Speed Boating, Motor Boating, Banana Ride, Horse Riding ,100 और 150 सीटर बोटिंग (Dubai Imported Boats)
Virgin Islands:
डैम के जलाशय में स्थित छोटे-छोटे द्वीपों को Virgin Islands कहा जाता है। ये शांत वातावरण और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं।
Gangrel Dam इको–टूरिज्म और पर्यटन (Eco-tourism & Tourism)
गंगरेल डैम को एक Eco-Tourism Hub के रूप में विकसित किया जा रहा है:
सुंदर बाग-बगिचे और बीच व्यू पॉइंट साथ ही साथ हट्स और रिसॉर्ट्स की सुविधा बोटिंग साइट्स और रिसॉर्ट्स का विकास स्थानीय देवी-देवताओं के मंदिर जिसकी मान्यताएं दूर दूर तक फैली हुई है। हर साल हजारों पर्यटक यहां घूमने आते हैं
Gangrel Dam धार्मिक ,सांस्कृतिक महत्व और मान्यताएं
डूब क्षेत्र में बसे देवी-देवताओं के मंदिरों को नए स्थानों पर पुनः स्थापित किया गया है:
आदि शक्ति मां अंगारमोती –
1.पहले चंवर ग्राम में स्थित थी, परंतु इस समूचे क्षेत्र के जल मग्न होने के कारण मां अंगरमोती माता को ग्राम गंगरेल के बांध किनारे लाकर बसाया गया है, कहा जाता है माता अंगारमोती स्वयं बांध की रक्षा करती है, माता की मूर्ति इसी वजह से गंगरेल में स्थापित किया गया है, परंतु माता की वास्तविक और पुरानी मंदिर आज भी चंवर गांव में स्थित है।
2. मां अंगार मोती माता की महिमा समूचे छत्तीसगढ़ अपितु आसपास के राज्यों में भी फैली हुई है, चैत्र एवं क्वांर नवरात्र में यहां हजारों की संख्या में आस्था के दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।जिसमें गंगरेल, आसपास के गांव, और समूचे छत्तीसगढ़, सहित बाहर राज्य के श्रद्धालुओं द्वारा कोने कोने से आकर दीप प्रज्वलित की जाती है। दोनों नवरात्र में गंगरेल बांध की खूबसूरती और व्यापकता देखते ही बनती है।प्रत्येक नवरात्र में यहां अष्टमी के दिन हवन, एवं कन्यभोज का आयोजन होता है, जिसमें हजारों लोग प्रसाद स्वरूप भोजना ग्रहण करने आते हैं। इन दोनों नवरात्रों में गंगरेल में लोगों की भीड़ और सैलाब देखते बनती है।
3. प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाने के प्रथम शुक्रवार को यहां का मंडई होता है, जिसमें समूचे डुबान क्षेत्र के देवी देवता सम्मिलित होती है, जिसकी चर्चा समूचे क्षेत्र में फैली हुई हैं।इस दिन गंगरेल में आने वाले लोगों की संख्या लाखों में होती है, जिला प्रशासन को इस भीड़ और श्रद्धा के सैलाब को सम्हालने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है।पूरा जिला प्रशासन इसमें सहयोग करता है, पुलिस प्रशासन को इस दिन सबसे अधिक मशक्कत करनी पड़ती है।
4. मंडई के दिन एक अनोखी चीज यहां देखने मिलती है, जिसमें विवाह पश्चात कई वर्षों से संतान सुख की लालसा लिए माताएं इस दिन आंगा देवता के सामने लेट जाती है, देव स्वरूप आंगा देवता और बैगा इन माताओं के ऊपर से चलकर निकलती है, और यह कोई अंध विश्वास नहीं अपितु समूचे क्षेत्र की श्रद्धा, विश्वास, और आस्था का प्रतीक है। क्योंकि कहा जाता है यहां सच्चे मन से और सच्चे श्रद्धा से मन्नत मांगने वाला कभी खाली हाथ नहीं जाता, यही आदि शक्ति मां अंगार मोती माता की महिमा है।चूंकि मंडई के दिन इन माताओं की संख्या 10 या 20 नहीं अपितु कम से कम 250 से 300 की होती है।यह संख्या बल माता के प्रति आस्था और विश्वास का प्रतीक है।
5. प्रत्येक शुक्रवार को यहां बलि स्वरूप बकरे की बलि दी जाती है, जो यहां से मन्नत मांग कर गए श्रद्धालुओं द्वारा समर्पित की जाती है।मान्यता है किसी बुरे परिस्थिति, किसी बीमारी, किसी कानूनी मामले, स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं, कोई विपदा, या किसी प्रकार की व्यक्तिगत समस्या से लंबे समय से जूझ रहे व्यक्ति यहां आकर माता के सामने, श्रद्धा और विश्वास के साथ जो मन्नत मांग कर जाते हैं, कुछ दिनों में उनकी समस्या का हल हो जाने पर शुक्रवार को यहां भेंट स्वरूप बकरे की बलि देने हेतु आते हैं।
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मनकेशरी देवी – पहले लमकेनी गांव में विराजमान थी , परंतु अब अब कोड़ेगांव में स्थापित हैं।
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छिनभंगा माता (कोरलमा), रनवासिन माता (भिड़ावर) – आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्र है माता छिमभंगा माता।
यहां कभी मड़ई मेले का आयोजन हुआ करता था जो अब भी लोगों की स्मृति में जीवंत हैं।
मां अंगारमोती, मनकेशरी देवी, रनवासिन माता, छिनभंगा माता जैसे प्राचीन मंदिर आज भी लोकप्रिय हैं। मान्यता है कि जैसे ही हनुमान जी के चरणों को पानी छूता है, डैम के गेट खोलने पड़ते हैं।
एक एडवेंचर वाली खबर??
अधिकतर लोगों को खासकर बाहर से आने वाले लोगों को नहीं पता के गंगरेल बांध के ऊपर से चलते हुए उस पर जाने पर एक बहुत की सुंदर गार्डन है, जिधर जाने पर आजकल प्रतिबंध लगा दिया गया है,सुरक्षा कारणों से। उसी बांध के नीचे से एक अनोखी गैलरी सुरंग बनी हुई है, जहां से आप चलते हुए बांध के इस छोर से उस छोर जा सकते हैं। जिसकी इंजीनियरिंग और निर्माण दोनों बहुत ही अदभुत और आश्चर्य चकित करने वाली है,जहां बांध के सिहरन से पानी बहती रहती है, पानी की कलकल की आवाज, और एसी की ठंडकता, सुरंग पर बनी सीढ़ियां, और उतर चढ़ाव वाला रास्ता, परंतु सुरक्षा कारणों से आम जनता के वहां जाने पर प्रतिबंध है, अन्यथा गंगरेल में देखने वाली कोई चीज है तो वो है माता अंगारमोती के दर्शन, मिनी गोवा बीच, मानव वन, और डैम गैलरी, इसे नहीं देखा तो क्या गंगरेल देखा आपने?
गंगरेल डैम के लाभ (Benefits of Gangrel Dam)
भिलाई स्टील प्लांट को जल आपूर्ति सालों से हो रही है। रायपुर, धमतरी, बालोद, दुर्ग जिलों में सिंचाई का विस्तार इसी बांध के भरोसे है, गंगरेल बांध के पूरी तरह न भरने की स्थिति में इन जिलों में पानी की समस्याएं उत्पन्न हो जाती है। किसान साल में दो से तीन फसलें उगा सकते हैं क्योंकि गंगरेल बांध के होते उन्हें सिंचाई की चिंता नहीं होती। स्थानीय रोजगार व पर्यटन में वृद्धि- गंगरेल क्षेत्र पूर्णतः पर्यटन स्थल के रूप मे विकसित हो रहा है, भविष्य में संभावनाएं बहुत है, धमतरी से गंगरेल रोड चौड़ीकरण के पश्चात लोगों की आवाजाही और बढ़ जाएगी, जिससे यहां स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, मंदिर क्षेत्र, पर्यटन क्षेत्रों में छोटे छोटे दुकान और धंधे को जोर मिलेगा, स्थानीय लोगों को अधिक व्यापार के मौके मिलेंगे।
Hydroelectric Power
से स्थानीय उद्योगों को ऊर्जा – गंगरेल में जलविद्युत (Hydraulic Power) कैसे उत्पन्न होती है?
गंगरेल डैम में जलविद्युत उत्पादन की प्रक्रिया वैज्ञानिक और पर्यावरण अनुकूल है। इसमें जल के गिराव (head) और बहाव (flow) की शक्ति का उपयोग कर टरबाइनों को घुमाया जाता है, जिससे जनरेटर बिजली उत्पन्न करता है।
प्रमुख घटक:
1. Intake Structure – पानी को टरबाइन तक लाने का सिस्टम
2. Penstock – हाई-प्रेशर पाइप, जिससे पानी टरबाइन तक जाता है
3. Turbine – जल दबाव से घूमने वाला यंत्र
4. Generator – टरबाइन से जुड़ा हुआ, जो विद्युत उत्पन्न करता है
5. Powerhouse – जहां पूरी विद्युत उत्पादन प्रक्रिया होती है
6. Transmission Line – जिससे बिजली ग्रिड में भेजी जाती है
बिजली उत्पादन क्षमता
गंगरेल डैम पर प्रस्तावित या चालू हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की अनुमानित क्षमता निम्न प्रकार है:
घटक जानकारी
संभावित क्षमता लगभग 10 मेगावाट वर्तमान स्थिति लघु जलविद्युत परियोजना की तैयारी उद्देश्य धमतरी, रायपुर और आस-पास के क्षेत्रों में स्थानीय आपूर्ति
नोट: यह एक लघु जलविद्युत परियोजना (Small Hydro Project – SHP) के रूप में विकसित की जा रही है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा।
पर्यावरणीय लाभ
कोयला आधारित संयंत्रों की तुलना में शून्य प्रदूषण
स्थानीय नदियों का उपयोग कर स्थानीय ऊर्जा समाधान
सिंचाई और जलापूर्ति के साथ दोहरे लाभ
ग्रीन एनर्जी मिशन में योगदान
स्थानीय विकास पर प्रभाव
क्षेत्र में रोजगार सृजन
विद्युत आपूर्ति सुधरने से औद्योगिक विकास
ग्रामीण इलाकों में 24×7 बिजली सुविधा
इको-टूरिज्म को भी मिलेगा प्रोत्साहन
कैसे पहुंचे (How to Reach Gangrel Dam)
सड़क मार्ग:
* NH-30 से सीधे धमतरी, फिर आंबेडकर चौक होते हुए रुद्री फिर सीधा गंगरेल।
रायपुर से सड़क द्वारा 2-3 घंटे का सफर
रेल मार्ग:
निकटतम रेलवे स्टेशन: धमतरी रेलवे स्टेशन
मुख्य ट्रेनों से रायपुर तक यात्रा करें, फिर टैक्सी से जाएं
हवाई मार्ग:
निकटतम हवाई अड्डा: स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट, रायपुर (92 किमी)
गंगरेल बांध यात्रा को खास बनाने के लिए Bardiha Lake View Resort
एक प्रमुख ऑप्शन है—विशेषकर यदि आप सुविधाजनक, आरामदायक और वॉटर एडवेंचर चाह रहे हैं। वहीं साधारण बजट में प्रकृति के करीब अनुभव के लिए Machaan Log Huts और Aaradhy Guest House, Shiva Resort अच्छे विकल्प हैं।
1 Bardiha Lake View Resort – गंगरेल बाँध का प्रीमियम रिसॉर्ट
लोकेशन:
Gangrel Dam के निकट, मुख्य गेट के पास ही मौजूद Dangi Macha, Dhamtari (12–15 किमी)
मुख्य आकर्षण:
लेक व्यू लक्ज़री कॉटेजेज: लकड़ी के आलीशान डीलक्स कॉटेज में वर्चस्वपूर्ण दृश्य, आधुनिक सुविधाओं के साथ (एसी, टीवी, Wi‑Fi, गीजर)
प्राइवेट बीच एवं वाटर-स्पोर्ट्स: जेट स्की, स्पीड बोट, कयाक, पैडल बोट और बनाना राइड तक की व्यवस्था
रात में मनोरंजन: कंफर्टेबल बोनफायर, लॉन/गार्डन, और स्थानीय-मैथिल व्यंजनों के साथ रेस्टोरेंट उपलब्ध।
2. Machaan Log Huts (Budget विकल्प)
स्थान: गंगरेल बांध के पास, जंगल सीमा के निकट
किराया: Log Huts: लगभग ₹2,000/रात
Camping Tents: लगभग ₹1,000/रात (दो लोग)
अनुभव:
सरल, नेचर‑लविंग स्टे, बिना अच्छे सुविधा पॅक के, लेकिन प्राकृतिक अनुभव के लिए उपयुक्त।
3. Shiva Resort and Restaurant (शिवा रिसॉर्ट और रेस्टोरेंट)
रिसॉर्ट/गेस्ट हाउस | प्रकार | किराया (रात के लिए) | मुख्य पहचान |
---|---|---|---|
Bardiha Lake View Resort | Deluxe cottages / Swiss tents | ₹5,800 / ₹3,500 | लक्ज़री, वाटर स्पोर्ट्स, निजी बीच |
Machaan Log Huts | Log huts / Camping tents | ₹2,000 / ₹1,000 | बजट विकल्प, सरल प्राकृतिक अनुभव |
Aaradhy Guest House | Basic guest house | ₹1,999–3,000 | सस्ती, गेट के पास किफायती ठहराव |
गंगरेल डैम के पीछे छुपा दर्द: 52 गांव डूबे, 8,275 परिवार विस्थापित और आज भी न्याय की लड़ाई जारी
धमतरी जिले में स्थित गंगरेल डैम, छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा और लंबा बांध,
प्राकृतिक सुंदरता और जल क्रीड़ा के लिए तो जाना जाता है, लेकिन इसके पीछे
एक दर्दनाक कहानी भी छिपी है! इस विशाल बांध के निर्माण के दौरान और बाद
में, कुल 55 गांव डूब क्षेत्र में आए, 52 गांव डूब गए और करीब 8,275 परिवारों
को अपने घर, खेत और गांव छोड़कर कहीं और बसना पड़ा।
विस्थापन की हकीकत
1972 में गंगरेल डैम का शिलान्यास हुआ और 1973 से विस्थापन की
प्रक्रिया शुरू हुई। डैम के जलभराव क्षेत्र में आने के कारण कई गांव
पूरी तरह पानी में डूब गए। विस्थापित परिवारों को नाम मात्र का मुआवजा मिला और पुनर्वास की
कोई उचित व्यवस्था नहीं हुई।
ग्राम ठेमली के 62 वर्षीय गणेश खापर्डे बताते हैं, “हम 1973 से पुनर्वास की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई न्याय नहीं मिला। हमारी 10 एकड़ जमीन का मुआवजा महज 4,667 रुपए दिया गया था,
जो अंग्रेजों के जमाने के नियम के हिसाब से था। वह नाम मात्र का मुआवजा था।”
रामधीन गोड़, जो ग्राम उरपुटी के निवासी हैं, बताते हैं कि उनका गांव डूबने के
बाद परिवारों ने आसपास के गांवों या रिश्तेदारों के पास शरण ली। “हमने तब नया उरपुटी गांव पास की ऊंची जगह पर बसाया, लेकिन
आज भी हम विस्थापन की वजह से कई तरह की कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।”
जल सत्याग्रह और लंबे संघर्ष की कहानी
डूबान प्रभावित परिवारों ने अपने हक के लिए कई बार आवाज उठाई। 2013 में 18 दिनों तक चले धरने और भूख हड़ताल के बाद भी जब प्रशासन
ने उनकी मांगों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, तो उन्होंने गंगरेल डैम के
पानी में उतरकर 6 घंटे तक जल सत्याग्रह किया। तत्कालीन प्रशासन ने तीन महीने में समाधान का वादा किया, लेकिन सालों बीत
जाने के बाद भी कोई राहत नहीं मिली इसलिए, अब तक लगभग 2,000 से
अधिक परिवारों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने पुनर्वास और
मुआवजे की मांग को न्यायालय तक ले जाया है।
डूबे हुए 52 गांव
गंगरेल डैम के जलभराव में डूबे गांवों की संख्या 52 है, जिनमें गंगरेल, चंवर, चापगांव, तुमाखुर्द, बारगरी, कोंडेगांव, मोंगरागहन, सिंघोला, मुड़पार, कोरलमा , कोकड़ी, तुमा बुजुर्ग, कोलियारी, तिर्रा, चिखली, कोहका, माटेगहन,कोदागहन, पटौद, हरफर, भैंस मुंडी , तासी, तेलगुड़ा, बरबांधा, सिलतरा, बरपदर , मोगरी , विश्रामपुरी, उरपुटी, कलार बाहरा, किशनपूरी, , बटरेल, और सटीयारा जैसे कई गांव शामिल हैं। इनमें से 30 गांवों के लोग जंगल और पहाड़ों में जाकर पुराने गांव के
नाम पर नई बस्तियां बसाए, लेकिन 22 गांव जैसे ठेमली, बसंत, कोकड़ी आदि का पूरा अस्तित्व ही मिट गया।
**आपकी जानकारी के लिए बता दूं इनमें से एक गांव मेरे दादा जी का गांव है ग्राम सटीयारा**
आज भी जारी है संघर्ष
गंगरेल डैम के पीछे छुपा यह विस्थापन और
पुनर्वास का संघर्ष आज भी जारी है। परिवार जो कभी खेती और जमीन पर निर्भर थे, अब मछली पकड़कर
और नाव चलाकर जीवन यापन कर रहे हैं। उनका हक मांगने का संघर्ष 42 सालों से चला आ रहा है, लेकिन न्याय अभी भी दूर है।
आसपास के प्रमुख स्थल (Nearby Tourist Attractions)
सिहावा: महानदी का उद्गम स्थल
श्रृंगी ऋषि आश्रम और कर्णेश्वर मंदिर
सीतानदी अभयारण्य (Sitanadi Wildlife Sanctuary)
मैडम सिली बांध: ब्रिटिश कालीन ऐतिहासिक बांध
FAQs –
Gangrel Dam in Hindi
Q1. गंगरेल डैम क्यों प्रसिद्ध है?
अपने सुंदर जलाशय, जल क्रीड़ा गतिविधियों, और सिंचाई
सुविधा के लिए प्रसिद्ध है।
Q2. गंगरेल डैम जाने का खर्च कितना है?
₹500–₹1000 प्रति व्यक्ति (वाटर स्पोर्ट्स अलग)
Q3. गेट्स की संख्या कितनी है?
कुल 14 गेट (स्पिलवे)
Q4. गंगरेल डैम किस नदी पर है?
महानदी नदी
Q5. इसे Mini Goa क्यों कहा जाता है?
जल क्रीड़ा, सुंदर द्वीप, और बीच व्यू के कारण
निष्कर्ष (Conclusion)
गंगरेल डैम, छत्तीसगढ़ का गौरव है — एक ऐसा स्थान जो प्रकृति प्रेमियों, साहसिक
पर्यटकों और इतिहास के शोधकर्ताओं सभी को आकर्षित करता है। यह बांध सिर्फ
जल स्रोत नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति, विरासत, रोजगार और प
र्यटन का केंद्र है। अगर आपने अब तक गंगरेल
डैम नहीं देखा, तो अपनी अगली यात्रा की योजना जरूर बनाएं!
गंगरेल डैम ने छत्तीसगढ़ के विकास में बड़ा योगदान दिया है, लेकिन इसके पीछे विस्थापित परिवारों का दर्द और संघर्ष भी याद रखना जरूरी है। हमें यह समझना होगा कि विकास के नाम पर किसी के जीवन का अस्तित्व खतरे में नहीं आना चाहिए। गंगरेल डैम के विस्थापितों की न्याय मांगना एक मानवता की आवाज है, जिसे हम सबको सुनना और समर्थन करना चाहिए।
क्या आप गंगरेल बांध जा चुके हैं? अपने अनुभव नीचे कमेंट में साझा करें।
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